शनिवार, 30 मार्च 2013

शराबी यारों के ...किस्से

अक्सर हर इन्सान के कुछ ऐसे यार होते ही है कि जिनसे वो बचना चाहता है।  मेरे भी कुछ ऐसे  ही यार है जिनसे मै बचता फिरता हूँ। वेसे मेरा और उनका मिलना केवल होली के शुभ  अवसर पर  ही होता है वो भी कुछ 10 मिनट के लिये पर यकीन मानिये के वो कुछ पल मेरे लिये एक साल से कम नही समझो के घडी ही  रुक  जाती है । अभी होली पर गाँव में ही घर पर था  बस आ गये श्रीमान लोग जेसा की मुझे पहले से ही अंदेशा था की जमीन इधर से उधर हो जाये पर वो नलायक लोग जरुर आयेंगे जबकि में चाहता नही हूँ की  वो आयें। पर होता वही हो जो आप नही चाहते। 
         करीब दोपहर के 2 बजे के करीब 4 -5 लोग अपनी अपनी मोटर साइकिल पे सवार आ धमके बवाली लोग, दारू के नशे में धुत्त। बस आते ही दरवाज़े से ही विशेष आवाज़ से सम्बोधन शुरू कर देते है। बस मेरे लिए आफत वही से शुरु हो जाती है। सोचता हूँ की घर बुलाऊ पर गेट से ही  आफत को भगाने  के मकसद से ही  खुद गेट पे आ जाता हूँ। 
        बस वही गले सले मिलते है और गुलाल सुलाल लगते ही दारू की मांग की जाती है धीरे से कहता हूँ की भाई गांव में हूँ, घर हूँ समझो पर उन्हें होश हो तब ना समझें साहब लोग।  गेट पर ही एक दुसरे को तेज़ तेज़ अजीब तरह से एक दुसरे की माँ बहन के साथ अजीब अजीब रिश्ते जोड़ते हुए शोर मचाना  सुरु कर देते  है। और गांव के माहोल में ये सब आम नही की कोई गाली गलोच प्यार से दें वो भी दोस्त लोग तुम्हारे घर के  सामने। इस तरह का  आचरण हमारी इज्जत के लिए  बहुत  ही घातक है   गांव के लोग इसी मोके की फिराक में रहते  है की किसी  भी तरह से बदनामी फेलाने का मोका मिल जाये किसी के  खिलाफ  खाश कर मेरे जेसे छवी  साफ इन्सान के लिए तो ज़रूर। की  भई फलां  के लडके के ऐसे  दोस्त है की जो खुल्ले आम  गली गलोच करते है  तो ये भी ऐसा  हो होगा वेसे बना फिरता है सरीफ । 
         खेर  बात यहीं खत्म  हो तो ठीक पर  एक साहब पूछ  बेठे की तेरी M.TECH कितनी बची  है इससे पहले में जबाब देता एक श्रीमान ने  मेरे को जॉब का ऑफर हाथो हाथ दे दिया की M.TECH के बाद में तेरी 40000 प्रति माह  की नौकरी तो कम से कम में लगवा दूंगा तभी एक ने अपनी शान में गुस्ताखी समझी और झूमते हुए बोला  की भाई  की 50000  की में लगवा दूंगा।इतना सुनते ही अपने दीवार के पीछे खड़े मेरे पडोसी के होश उड़ गये  और भाग गया में भी अब तक बहुत  परेशान  हो चूका था और शाम को मेने उसे अपने बच्चो को हडकाते हुए सुना की सालो कुछ पड़ोसियों   से कुछ सीखो । तभी साहब लोग बिना बुलाये अन्दर आ जाते है
           और हद तब हो गयी जब मेरे बाबा से दारू मांग बैठे। खेर बाबा ने थोड़ो थोड़ी दे दी। बस जेसे ही ग्लास उठाया एक दोस्त ने पूछ  लिया की सौरभ तू भी ले न मेने वही अपनी नज़र से, गुस्से और शर्म से मना कर  दिया की तू जानता   है में नही पीता  तभी एक महासय ने कहा  की " छोड़ दी है क्या अब,  वेसे कब से ? " अब इस बात का में क्या जबाब दूँ। शर्म से पानी पानी बाप बाबा के सामने वो भी उन दोनों के सामने उन  की नज़र ऐसे देख रही थी की जेसे में पहले वास्ताव में ही दारू बाज़ रहा हूँ। 
          अब आप लोग ही बताओ की इसे यारो से कोन  मिलना चाहेगा भला वो भी इतनी बुरी हालत में उन्हें होश भी न हो । खेर सुकर है ऊपर वाले का की  होली से होली ही मुलाक़ात होती है वरना में तो गांव छोड़ देना पडता , अब स्कूल के साथी है भगा भी नही सकता।
 अब आप लोग बताओ की इन यारो का क्या किया जाये।

1 टिप्पणी:

  1. Badhiya Tarika tha tujhe bhi thodi le leni chaiye thi,Uske bad tujhe nahi dost bure lagte or nahi hi daru buri lagti.

    Agli holi tak darubaaj ban ja, sare dost badhiya lagenge or bejaati ka ehsaas bhi nahi hoga or un dosto ko tu roj bulayega.

    Bahi-chara badho,Kyoki "AApas me prem karo desh vasiyo"

    OK Byeeeeeeeeeee.........

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