आज लगभग दो महीने बाद फिर से ब्लॉग पर हूँ आप की सेवा में , दरअसल अस्वस्थ होने के कारण सक्रिय नही रह पाया। समय तो था पर जैसा सभी जानते है की मन नही होता उस वक्त जब आप बीमार हो कुछ भी करने का।
आम,आमतौर ये शब्द हम रोज कही न कही किसी न किसी रूप में इस्तेमाल कर ही लेते है। जैसे कि आम आदमी , आम भाषा , आमतौर , आम रास्ता आदि। पर सबसे महत्वपूर्ण आम शब्द है आम।
आम से याद आया की मुझे मई, जून, जुलाई आमतौर पर सबसे ज्यादा पसंद महीने है इसलिए नही की गर्मी बहुत पड़ती है बल्कि आम के कारण। दरसल मेरी तम्म्न्ना है की काश मै उस महापुरुष से मिल पता जिसने आम को फलो का राजा नाम की संज्ञा दी और उन्हें इस ताज पोसगी के लिए धन्यवाद स्वरुप कुछ भेंट देता। वास्तव में देखा जाये तो आम कोई आम फल नही है बल्कि मै तो मानता हूं कि आम केवल फलो का आम राजा नही बल्कि सम्राट है यानि फल सम्राट आम।
इसके गुणों की बात की जाये तो अनेक क गुण है लेकिन इसका विशिष्ट स्वाद इसके गुणों के बारे में सोचने की नौबत ही नही आने देता बल्कि उससे पहले आम , आम प्रेमी के पेट में होता है। आम के अनेको प्रकार और सबका अलग अलग जयका इसकी तारीफ में चार चाँद लगा देता है। लखनऊ का आम किसी नबाब से कम नही। वाह क्या स्वाद होता है। लंगडा , दशहरी , चौसा, रामकेला आदि अलग अलग प्रकार अलग अलग बनावट और स्वाद के साथ। और अगर डाल का आम हो तो कहना ही क्या। जिसमे टपका का तो कोई सानी ही नही।
और जब बात आती है आम को खाने की तो असली स्वाद तभी आता है जब इसे पूरी बेसरमी के साथ खाया जाये मतलब की एक बार में सारा छीलकर बोल दो आक्रमण और जब गुठली पर पहुंच जाओ तो गुठली को इतना चुन्सो कि उसका पीलापन खत्म न हो जाये तभी मन को आम खाने के असली बेसरमी स्वाद का अहसास होता है अब अगर आम भी चाकू और कांटे के साथ खाया तो क्या खाक आम खाया। आम खाते वक़्त जब तक हाथ-मुहँ न सनें आम से तथा गुठली को मुहं से बार बार निकाल कर फिर से मुहं में डाल के न चुन्सा जाये तो बेकार है सब। आम की गुठली के अलावा कोई ओर कोई शाकाहारी चीज़ नही जिसे इन्सान एक बार मुहं से निकल के कर बिना नाक भौं सिकोडे फिर से उसी उत्सुकता के साथ मुह में डाल ले। यही है आम की खूबसूरती। मेरा एक मित्र तो आम केवल इस लिए खाता है की उसे कब्ज की समस्या है और आम उसका रामबाण इलाज।
और अगर आम कुदरती स्वाद चखना है तो पहुँच जाओ आम के बाग में और जितना खा सको उतना ले कर वही बाग में ही बैठ जाओ खाने पेड़ो की घनी छाया के बीच ताज़ा ताज़ा आम वो भी सामने बाल्टी में पानी में भीगे हुए और तुम खाट पर बैठ चुन चुन कर एक एक आम पर आक्रमण बोल रहे हो तब रूह को तृप्त करने वाला अहसास होता है कभी आज़माना और तब बताना।
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