बुधवार, 29 मई 2013

आधुनिक फैशन

आजकल मेरे महान देश में फैशन नामक गतिविधि बहुत तेज़ी से अनेक रूपो में अपने  पैर पसार रही है। अतः आज इन्हीं कुछ ना-ना प्रकार की गतिविधियों पर चर्चा होगी।
       फैशन न० 1 
आप देश के किसी भी कोने में चले जाओ यानी के रेल, बस, टेम्पों, घोडा-तांगा, रिक्शा, गांव में सेवानिवृत चचाओ की चौपाल या शहर में सुबह-2 दूध लेने गये नौकरी पेशे वाले लोग या किसी कॉलेज की कैंटीन में बैठे डुड-डुडनी प्रजाति के साथी या नुक्कड़ वाले बनिये की परचून की दुकान या विपक्षी पार्टी के कार्यकर्ता या टयूबवेल पर बैठे बीड़ी पीते किसान या बाबा के हुक्के के चारो तरफ बैठे बुजुर्ग, या दफ्तर से शाम के वापस घर लौटते सरकारी बाबू, इन सभी को दिक्कत है सरकार से या इस देश से, अलग अलग रूपों में। किसी की दिक्कत है तनख्वाह समय से नही आती,किसी की समस्या है फसल के दाम मुनासिब नही है या किसी की परेशानी है कि भ्रष्टाचार बहुत है या किसी को तो ये देश ही नही भाता। हम अल्प शब्दों में कहे तो आप सुबह से ले कर शाम तक किसी भी वक्त अपने घर से निकले आप बिना सरकार या देश की बुराई सुने अपने गंतव्य पहुंच ही नही सकते बशर्ते आप के कानो में रुई न ठुंसी गयी हो, मै इस बात का दावा करता  हूँ की अगर दो या दो से अधिक लोग कहीं  बैठे है तो वहा सरकार या देश के बारे  में बात हुई होगी और अनेक तर्क-कुतर्क हुए होंगे। मानो हर इन्सान अपने दिल में इस देश पर डालने के लिए परमाणु बम लिए बैठा है बस मौका  मिल जाये। 
          समस्या होना अच्छी बात है। समस्या है तो उसका समाधान भी जरूरी है। पर मै मानता हूँ कि आजकल ये  एक फैशन सा बन गया है कि जो देश या सरकार की बुराई जितने अधिक शब्दो और जितनी ज्यादा देर तक कर दे वो उतना ही बड़ा फैशन-परस्त। हर आदमी इस गतिविधि में हिस्सा लेता  है। AC गाडियों  या AC दफ्तरों में बैठ देश की माली हालत का जिक्र करना तथा सिस्टम को कोसना जैसे आधुनिक फैशन और कथित देश-शुभचिंतक लोगो का धर्म हो गया हो। हाँ अगर उन से सवाल  किया जाये कि वो  खुद देश या सरकार को  माली हालत से  निकालने के लिए क्या सहयोग कर रहे? तो साहब लोगो को सांप सूंघ जाता है। करेंगे कुछ नही पर बाते बडी-2 करेंगे।
इस फैशन ने आजकल मेरे नाक में दम कर रखा  है कही  भी जाऊं बस यही देश और सरकार विरोधी बाते मानो आज कल एक दुसरे से बात शुरु करने का पहला वाक्य ही ये बन गया है  " इस देश का कुछ नही होगा "
  मेरे  देशवासियो मेहरबानी करके बचो इस आदत से, इस फैशन में  सरीक हों इससे अच्छा है कुछ देश के लिए करें, न की केवल बातें।
 फैशन न० 2 
आजकल मैं एक और फैशन पर गोर फरमा कर रहा हूँ कि मेरे कुछ युवा साथी सडक या बस या यात्रा के दौरान कानों में मोबाइल या किसी और संगीत यंत्र के हेडफोन  लगाने की आदत या फैशन से ग्रस्त हैं।
     संगीत प्रेम बहुत  अच्छी बात है या यों कहें संगीत बिन जीवन अधूरा है। मै भी संगीत प्रेमी हूँ। पर इस प्रेम में चक्कर में जान का खतरा मोल अच्छी बात नही है। 
   मैने देखा है कि मेरे युवा साथीयो ने इसे बहुत बडा फैशन समझ लिया है कि अगर कुछ काम  नही कर  रहे तो  कानो में हेडफोन ठूस लो चाहे आप सार्वजनिक स्थान पर  हो या यात्रा में। भले ही कोई तुम्हारा जानने वाला पीछे से तुम्हे आवाज़ लगा रहा हो या कोई  बस वाला साइड मांगने को हॉर्न बजा रहा हो। पर उन्हें क्या कानो में हेडफोन है दुनिया भाड़  में जाये। हाँ बस वाला साइड मार जाये तब सब संगीत प्रेम काफूर  जाता है तब ये कोई नही कहता की हमने साइड नही दी थी बस को। क्योंकि कानो में संगीत की आवाज़ आ रही थी न की हॉर्न की। रोज अखबार में देखता हूँ की रेल की पटरियों पर भी लोग कानो में संगीत बजाये टहलते  है या पार करते  है पीछे से रेल आती है लोग शोर मचाते है की हट जाओ रेल आ गयी पर कानो में तो संगीत है और बस। 
     आखिर क्यों इतने लापरवाह है ये मेरे साथी। शायद ये अपने आसपास की दुनिया को अपने स्तर से कम आंकते है और उसकी बातो से बचने के लिए संगीत का सहारा लेते है तभी तो बस में भी बैठेंगे तो हेडफोन लगा के भले ही कंडेक्टर टिकेट लिए शोर मचाता रहे। जबकि घर से बाहर इन्हें अपने कान और आँख खुले रखने चाहियें जैसा की महान लोगो ने कहा  है पर इनसे महान कौन  है कम से कम  ये तो ऐसा  ही मानते है। समाज की बाते न सुनना चाहते न देखना। इनका समाज है फेसबुक और आवाज़ है चैटिंग। बाकि लोग है फालतू और गँवार।
फैशन न० 3
 एक और फैशन जो मै पिछले कुछ वर्षो से महसूस कर  रहा हूँ हमारे आस पास के साथियों का दुआ-सलाम करने का तरीका।  पहले राम-राम , इस्लाम- वलेकुम, सत्श्रीकाल , नमस्ते तथा प्रणाम आदि महान शब्दो का चलन था जिनके उच्चारण या श्रवण मात्र से ही दिल को अति सुकून  प्राप्त होता है। जब भी दो या अधिक का  होता था तो इन्ही शब्दो के साथ सम्मान के साथ बात  शुरु होती थी। 
   पर अब ऐसा शब्द खुल्ले आम सुनने को नही मिलते। इनका स्थान ले लिया है हाय- हेल्लो  ने। ख़ैर मैं इनका भी विरोधी नही हूँ पर जिस प्रकार से मेरे साथीगण हाय- हेल्लो करते है वो  भी गलत है।
    मैने  देखा है कि लोग हाय भी कहते है और किसी को सुनाई  भी नही पड़ता है  केवल होठो से हाय कहने जैसी डिज़ाइन बना देते है आवाज़ नही निकलते आखिर क्यों निकाले उर्जा का हास् होता है मुफ्त में ही ,अरे यार जब काम बिना आवाज़ के ही  रहा है तो आवाज़ क्यों निकाले भई। और सामने वाला भी  इस सम्मान को पा कर  गद गद महसूस करता है खुद को। मेरी समझ ये नही आता जब इतनी शर्म आती है तेज़ आवाज में दुआ सलाम करने में तो लोग करते ही क्यों है क्या जरूरत है डिज़ाइन बनाने की भी। भारत के संविधान में तो इसी कोई मजबूरी दिखाई नही गयी है आम नागरिक की।  मै आज भी तेज़ आवाज़ में सर उठा कर सभी छोटो बडो राम राम करता हूँ और मुझे ऐसा  करके गर्व महसूस  होता है

 



       

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