इस जीवन से बहुत कम लोग संतुष्ट होते है इसमें कोई दो राय नही। और बिना किसी उचित प्राप्ति या सफलता के मिले संतुष्ट होना भी इंसाफ नही. बहुत लोगो का मानना है कि संतुष्ट होना ही पतन का कारण है। संतोष को ही संतुष्टि कहा जाता है मै अपने इस अल्प जीवन में बहुत कम संतुष्ट लोगो को जनता हूँ, लगभग एक ऊँगली पर गिने जा सकते है, जो अपने जीवन से पूरी तरह संतुष्ट हो। कोई किसी भी पेशे या रोजगार में क्यों ना हो सब कहते है की वो उस से पुर्णतया संतुष्ट नहीं। आखिर इसका कारण क्या है की मनुष्य उखड़ा उखड़ा सा रहता है अपने जीवन से, कभी भी हाल पूछो? तो बहुलता में जबाब आता है " कट रही है बस ". इसका सबसे बड़ा कारण है हमारा मनुष्य होना। हमारा दीमाग बहुत ही चंचल है। इंसान वो सभी सुख सुविधाए तथा ऊँचाई पाना चाहता है जिसका उसने कभी ख्वाब देखा होता है परन्तु ख्वाब हकीकत तभी बनते है जब उनके लिए प्रयास किया जाये ईमानदारी और लगन के साथ। अक्सर हर इन्सान बड़े ख्वाब देखता ही है जो की देखने भी चाहिये। पर उन सभी को पूरा करने के लिए भी एक समय निर्धारित होता है की वो फला काम किसी विशेष समय अन्तराल में ही पूरा किया जा सकता है जैसे की उदहारण के लिये अगर किसी को सेना में अफसर है तो 28 साल की उम्र तक ही बन सकता है ठीक इसी प्रकार हर काम को करने एक नियत वक़्त या समय अन्तराल होता है चाहे वो कोई लक्ष्य हो या किसी ओर मंजिल को पाना हो। पर जब वक़्त निकल जाता है तब शुरु होता है असंतुष्टि बुरा दोर जो जीवन को निराशा में तब्दील कर देता है और इन्सान को मालूम भी नही चलता की वो निराशा के गहरे खतरनाक गर्त में पहुंच चुका है।
बहुत से मामलों में देखने में आता है की मनुष्य के पास अपने ख्वाबो को सँजोने के लिए वक़्त भी है पर वो ज्यादातर वक्त कुछ करता भी नही ख्वाबो को पूरा करने के लिये ये स्थिति और भी ज्यादा घातक हो सकती है क्योंकि उसके पास वक़्त भी है पर वो उसका सदुपयोग नही कर पा रहा है और आगे एक वक़्त एसा भी आएगा की जब उसके पास वक़्त नही होगा और उसे होगा केवल पछतावा। यही है "कट रही है बस" जेसा वाक्य होंठो पर आने का कारण अगर वक़्त रहते कोई भी मेहनत कर लेता तो वाक्य ये होता है की " जिन्दगी जी रहे है " और ये एक सकारात्मत वाक्य है इसमें संतुष्टि का भाव साफ झलकता है और जब मन माफिक कुछ न हो तो असंतोष पैदा होता ही है स्वभाविक रूप से। और वही है असंतुष्टि, जिससे जीवन का रस खत्म सा हो जाता है और हम जीवन से निराश हो जाते है इसके अनेक नुकसान तरह तरह से हमारे सामने आते है।
इन्सान जीवन यापन के लिए मजबूरीवश किसी और कम में लग जाता है और ख़ुशी का मुखोटा पहनने की कोशिश करता है पर जब दिल खुश न हो सब कोशिशे बेकार जाती है. और जीवन में शेष रह जाता है मलाल और पछतावा।
और सबसे ज्यादा तकलीफ तभी होती है जब दिल कहता है कि "यार उस वक़्त थोडा मेहनत/प्रयास कर लिया होता तो तस्वीर कुछ ओर होती आज " वक्त की खुद को नही दोहराता जो गया सो गया।
इसी लिए जीवन जिस कार्य के लिए मन करे या जिस ऊंचाई को पाना हो,उस कार्य को करने के लिए समय रहते जुट जाना चाहिये और जब तक मोका मिले प्रयास करते रहना चहिये परिणाम चाहे कुछ हो। आखिर ये मलाल तो न रहेगा भविष्य में की हमने पाने के लिए कुछ किया नही। बल्कि ये कहेंगे हमने किया पर हमारे मुक़्क़्द्द्र में था नही सो हमे मिला नही । असल में सब करना चाहते तो है पर जब अहसास होता है की कुछ करना है तब तो हमे में उत्साह सारी दुनिया का आ जाता है मानो। पर लगातार बरक़रार नही रह पाता। एक दो दिन बाद उत्साह काफूर हो जाता है और क्योंकि हम ओर दुनिया दारी के झमेलों में फंस जाते है और असली काम को भुला देते है और इसका इलाज है द्रढ़ निश्चय की जो ठान ली है वो कर गुजरना है अगर ये भाव एक बार आ गये तो विश्वास मानिये आप को कोई रोक नही सकता।
डॉ परवीन जी इसी विषय पर कहते है कि अभी तुम जवान हो और जवान लोग चला नही करते बल्कि उड़ा करते है चलते तो वो लोग है जो उड़ नही सकते दोड़ नही सकते। इस लिए जो ठान ली है वो कर गुजरो ताकि जीवन में कभी किसी चीज़ का मलाल न रहे की .........क्योंकि जिंदगी न मिलेगी दोबारा