गुरुवार, 14 मार्च 2013

शान में गुस्ताखी ... मतलब आफत को न्योता

शान  में गुस्ताखी ... इस जमाने  में भला किसे ग्वारी। खाशकर हमारे नेता जी लोग ओर  पुलिस  विभाग  इस कदम  को बहुत  ही गंभीरतापूर्वक  लेते है । अतः आप सभी पाठको से विनम्र निवेदन  है कि भूल वश भी ऐसा  कोई कदम  न उठाएं की उपरोक्त लोगो( भले ही वह इन्सान कोई छुट - भैया  नेता हो या एक मामूली  पुलिस का गैर  जिम्मेवार जवान ) को ना-गवार गुजरे अन्यथा गंभीर परिणाम भुगतने  पड़ सकते है। 

उदाहरण निम्नांकित हें - 

१-  हाल  ही में घर जाने का योग बना था वहाँ पर भी दिन की सुरुआत  अखबार से ही होती है । पेज खोला  की देखता  हूँ   मोटे -२ हरफो में  छापा है "ढाबे मालिक की रात  हवालात में बीती"। बड़ी  जिज्ञासा के  साथ पढना शुरु किया  कि आखीर  माज़रा क्या है भई। हुआ यूँ के हमारे नज़दीक के  कस्बे के एक सत्ता पक्ष के  मामूली से नेता जी रात को  ढाबे पे खाना उधेड़ने (खाने ) पहुंच गये। ऑर्डर - सोडर  हुआ फिर सुरु हुआ नेता जी का खाना। अब नेता जी ने ओर  रोटियाँ  मांगी तो  वही हुआ जिसकी आप कल्पना कर रहें  है. परम्परा अनुसार  परोशने वाले ने कहा की अभी सिक जाने दो(ढाबे का ये मूलभूत  नियम है  की वहां रोटी कभी वक़्त पे नही मिलती हमेशा रोटी मिलने के बीच में मजबूरीवश पानी पीने का वक़्त बड़े आराम से मिलता है जिससे पेट बिना रोटी के  ही   भर जाता है अक्सर  )। और उसने अपनी वो भीनी सी कतील मुस्कराहट भी नेता जी तरफ फेंक दी जो  हर ढाबे के परोशने वालो की एक सी होती है. अब नेता जी दिन भर देश की सेवा में मगन थे  शाम को भूख थी भी कुछ ज्यादा  जबर। रोटी सीकी  और परोशने वाले ने दे दी किसी दूसरे खाने वाले को जो  काफी देर से मांगने की अवस्था में था नेता जी की तरह । बस यही एक भयंकर भूल हो गयी ढाबा प्रबंधन  से की नेता जी मौजूदगी   में किसी और को रोटी पहले कैसे दे दी गयी? फिर सुरु हुआ नेता जी का बल प्रयोग ढाबे वाले पर लात घूंसों की अनियंत्रीत बोछार के रूप  में। बात यहीं नही थमी,खाना  छोड़ नेता जी जा पहुंचे एफ  आई आर करने थाने। फिर शुरु हुई   थानेदार सहाब की भूमिका। थानेदार सहाब  की नज़र में  ढाबा मालिक गुन्हेगार पल भर में ही शाबित हो गया जैसा की होना ही था।
क्योंकि थानेदार साहब पार्टी भक्त ओर नेता भक्त ज्यादा , कानून भक्त कम थे। अब भला नेता जी की शान में गुस्ताखी हो और थानेदार जी इसे होने दे क्या मालूम बात कल  ऊपर तक जा पहुंचे और तबादले का फरमान निकल जाये। अत : पुरे दल बल के  साथ थानेदार साहब जा धमके ढाबे पे और गालियों   से माहौल को रंगीन करते हुए ढाबे वाले को  लाठीयो के  दम से उठा के  गाड़ी में डाल के सीधे हवालात के लिए प्रस्थान किया। जाते जाते ढाबे मालिक के  सहयोगी को आदेश दे गये की साले अगर इसकी धुनाई में कुछ रियायत चाहता है तो थाने  में अंडा - करी और  रोटी मक्खन के साथ पूरे  थाने के  लिए जल्दी ले के आ जा।
 खैर सुबह मामला बड़े नेता जी(नगर अध्यक्ष ) की अदालत में जा कर सुलटा। 
इसीलिये  होशियार - यू . पी . में नेता जी की शान में गुस्ताखी माफ नहीं

२ - अन्ना आन्दोलन का वक़्त था और  मैं  रेल से मेरठ जा रहा था। अभी कुछ दूर ही पहुंचे की रेल रुक गई। मालूम हुआ की  पटरी में कोई दिक्कत है  रेल अभी आगे नही जाएगी. अब हमे पढने (भले ही इस लफ्ज़ का मतलब आजतक हमे मालूम नही) जाना था तो अविलंब हमने समनंतर मेरठ जाने वाले बस मार्ग पे आ गये की चलो भई बस से ही चलते हें। बस आई और  साहब हम उस में चढ़ लिए साथ में एक दीवान जी (पुलिस का सिपाही )भी चढ़ लिए। अब कंडेक्टर जी आये। नियमानुसार  पूरा टिकट के  पैसे  लिए(जैसा की बस में चढ़ने से पहले तय हुआ था की भले ही आधे रस्ते से चढ़े हो पर… ) ओर  टिकट बना दिया। अब बारी गाड़ी के  बोनेट पे बैठे दीवान जी की थी। कंडेक्टर ने पैसा माँगा की दीवान जी ने आँख दिखा दी। बस ये ही उनकी शान में गुस्ताखी हो गयी थी कि  अरे पुलिस से पैसा  कैसे माँगा बे?
 बस कंडेक्टर भी नया नया था ऊपर से अन्ना जी के आन्दोलन का  रंग सिर पे सवार था। टिकट मशीन रखी एक तरफ ओर एक हाथ से दीवान जी की गिरेबान पकड़ के  उन्हें बोनेट पे ही लीटा  लिया और 4 - 5 घुसे  दीवान जी के मोटे से पेट में अपने दूसरे ढाई किलो के  हाथ से जड़ दिये।
 अब वहाँ  तो बीच बचाव लोगो क दुवारा करा दिया गया। पर  कुछ दूर ही दीवान जी  का  थाना आ गया बस फिर क्या  गीदड़ घर में शेर हो गया. बस रोक ली गयी। कंडेक्टर  से नीचे आने को कहा  गया वो  धीरे से उतरा और उतरते ही अपने दोनो हाथ हवा में लहराते हुए चिल्लाया " मैं  अन्ना हजारे हूँ मुझे गिरफ्तार  करो ..."

इससे ज्यादा बेहतरीन पल मैने  अभी तक  अपने अल्प जीवन में नही देखा कि  दीवान जी भी इसे देख के  अपनी मार  भूल गये और आँख फाड़ -2 के क्या हुआ ये देखने में ही रह गये।
 खैर लोगो की प्रार्थना पे बस को जाने दिया गया और कंडेक्टर का नाम पूछ के  लिख लिया गया भविष्य देख लेने   के लिए। खुदा जाने बाद में क्या हुआ हो।

३ - अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश शासन ने 2 0 1 2  में 12 वी पास एवं  जो छात्र अभी फिलहाल में भी स्नातक कर रहे हें मुफ्त में लैपटॉप बांटे- शीक्षा  प्रोत्साहन  के लिये में. सुना जाता हैकि  उसमे एक खास सोफ्टवेयर डाला गया है जिससे उस लैपटॉप में वालपपेर में माननीय अखिलेश जी तथा श्री मुलायम जी का फोटो है। अभी सुनने में आया है  कि  कुछ छात्रों ने उसे हँटाने की नाकाम और दुस्साहसीक कोशिश की तो सारा लैपटॉप ही बंद हो गया जो चल ही नही पा रहा है। जिसे ले के  छात्र H P(निर्माता कंपनी ) के सर्विस सेन्टर के  चक्कर काट रहें है।
 अब हो गयी न वो ही बात " नेता की शान में कोई गुस्ताखी बर्दास्त नही की जाएगी न ही  सेवकों के दुवारा ना  ही लैपटॉप नामक मशीन के दुवारा "
तो आई बात समझ " शान से कोई मजाक नही " वरना गंभीर परीणाम  भुगतो ....

        वैसे अभी वक़्त आ गया है की आप  इस लेख को पसंद करे या ना करे  पर कमेन्ट/शेयर जरुर करना है। क्योंकि प्रतिक्रिया ना देना हमारी शान के  खिलाफ  है। आखिर हम भी किसी प्रधान-मंत्री से कम नहीं है भई ।



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