शनिवार, 30 मार्च 2013

शराबी यारों के ...किस्से

अक्सर हर इन्सान के कुछ ऐसे यार होते ही है कि जिनसे वो बचना चाहता है।  मेरे भी कुछ ऐसे  ही यार है जिनसे मै बचता फिरता हूँ। वेसे मेरा और उनका मिलना केवल होली के शुभ  अवसर पर  ही होता है वो भी कुछ 10 मिनट के लिये पर यकीन मानिये के वो कुछ पल मेरे लिये एक साल से कम नही समझो के घडी ही  रुक  जाती है । अभी होली पर गाँव में ही घर पर था  बस आ गये श्रीमान लोग जेसा की मुझे पहले से ही अंदेशा था की जमीन इधर से उधर हो जाये पर वो नलायक लोग जरुर आयेंगे जबकि में चाहता नही हूँ की  वो आयें। पर होता वही हो जो आप नही चाहते। 
         करीब दोपहर के 2 बजे के करीब 4 -5 लोग अपनी अपनी मोटर साइकिल पे सवार आ धमके बवाली लोग, दारू के नशे में धुत्त। बस आते ही दरवाज़े से ही विशेष आवाज़ से सम्बोधन शुरू कर देते है। बस मेरे लिए आफत वही से शुरु हो जाती है। सोचता हूँ की घर बुलाऊ पर गेट से ही  आफत को भगाने  के मकसद से ही  खुद गेट पे आ जाता हूँ। 
        बस वही गले सले मिलते है और गुलाल सुलाल लगते ही दारू की मांग की जाती है धीरे से कहता हूँ की भाई गांव में हूँ, घर हूँ समझो पर उन्हें होश हो तब ना समझें साहब लोग।  गेट पर ही एक दुसरे को तेज़ तेज़ अजीब तरह से एक दुसरे की माँ बहन के साथ अजीब अजीब रिश्ते जोड़ते हुए शोर मचाना  सुरु कर देते  है। और गांव के माहोल में ये सब आम नही की कोई गाली गलोच प्यार से दें वो भी दोस्त लोग तुम्हारे घर के  सामने। इस तरह का  आचरण हमारी इज्जत के लिए  बहुत  ही घातक है   गांव के लोग इसी मोके की फिराक में रहते  है की किसी  भी तरह से बदनामी फेलाने का मोका मिल जाये किसी के  खिलाफ  खाश कर मेरे जेसे छवी  साफ इन्सान के लिए तो ज़रूर। की  भई फलां  के लडके के ऐसे  दोस्त है की जो खुल्ले आम  गली गलोच करते है  तो ये भी ऐसा  हो होगा वेसे बना फिरता है सरीफ । 
         खेर  बात यहीं खत्म  हो तो ठीक पर  एक साहब पूछ  बेठे की तेरी M.TECH कितनी बची  है इससे पहले में जबाब देता एक श्रीमान ने  मेरे को जॉब का ऑफर हाथो हाथ दे दिया की M.TECH के बाद में तेरी 40000 प्रति माह  की नौकरी तो कम से कम में लगवा दूंगा तभी एक ने अपनी शान में गुस्ताखी समझी और झूमते हुए बोला  की भाई  की 50000  की में लगवा दूंगा।इतना सुनते ही अपने दीवार के पीछे खड़े मेरे पडोसी के होश उड़ गये  और भाग गया में भी अब तक बहुत  परेशान  हो चूका था और शाम को मेने उसे अपने बच्चो को हडकाते हुए सुना की सालो कुछ पड़ोसियों   से कुछ सीखो । तभी साहब लोग बिना बुलाये अन्दर आ जाते है
           और हद तब हो गयी जब मेरे बाबा से दारू मांग बैठे। खेर बाबा ने थोड़ो थोड़ी दे दी। बस जेसे ही ग्लास उठाया एक दोस्त ने पूछ  लिया की सौरभ तू भी ले न मेने वही अपनी नज़र से, गुस्से और शर्म से मना कर  दिया की तू जानता   है में नही पीता  तभी एक महासय ने कहा  की " छोड़ दी है क्या अब,  वेसे कब से ? " अब इस बात का में क्या जबाब दूँ। शर्म से पानी पानी बाप बाबा के सामने वो भी उन दोनों के सामने उन  की नज़र ऐसे देख रही थी की जेसे में पहले वास्ताव में ही दारू बाज़ रहा हूँ। 
          अब आप लोग ही बताओ की इसे यारो से कोन  मिलना चाहेगा भला वो भी इतनी बुरी हालत में उन्हें होश भी न हो । खेर सुकर है ऊपर वाले का की  होली से होली ही मुलाक़ात होती है वरना में तो गांव छोड़ देना पडता , अब स्कूल के साथी है भगा भी नही सकता।
 अब आप लोग बताओ की इन यारो का क्या किया जाये।

गुरुवार, 21 मार्च 2013

एक शाम सायरी के नाम

अभी गर्मी की सुरुआत भी नही हुई है की बिजली ने  अपना असली रूप दिखाना सुरु कर दिया है  अभी  जब मच्छरों से कुश्ती कर रहा हूँ   बिजली के  इंतजार में, तो दीमाग में आया   की  भई  चलो कुछ लिख दिया जाये। .
               अक्सर मुझे , जहाँ कही भी सायरी सुनने या पढने को  मिल जाती है वही पर  उसे अपने दिल में संजोने की भरपूर कोशिश करता हूं पर पर मेरी कमज़ोर याददास्त हर बार मुझे धता बता  के मेरे सब मनसूबा पे पानी  देती है  पर फिर भी कुछ पंक्तियाँ मैं  याद करने में कामयाब रहा हूँ  जो की मैने अपने कुछ जानने वालो से सुनी हैं या प्राप्त की हैं  sms इत्यादि से।  और मैं इन्हें  तरह - 2 के लोगो के सामने पेश करके अपने आप को एक मंजे  हुए सायर की तरह पेश करने का नाकामयाब ढोंग करता रहता हूँ आज कुछ पंक्तिया आप लोगो के सामने पेश है गोर फरमैयेगा ..............


मै तो शेर  सुना कर अकेला खडा रहा।
और सभी अपने - 2  चाहने वालो में खो  गये।
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रोना न कभी माँ के सामने 'सौरभ'.
वो कहते है ना की जहाँ बुनियाद हो वहाँ ज्यादा नमी अच्छी नही।
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तमाम उम्र  तेरा इंतज़ार  कर लेंगे
मगर ये रन्ज रहेगा की जिन्दगी कम है 
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भूलें हैं रफ्ता रफ्ता तुम्हे मुददतो में हम।
किस्तों में ख़ुदकुशी करने मज़ा हम से पूछिये 
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कोशिश तो की  थी बहुत मैने  पर मुलाकात  न हुई।
अफसोस है की उनसे कभी बात न हुई। 
दुनिया  तो  खूब सो रही है हो के बेख़बर। 
मेरी मगर बहुत दिनो से कोई रात न हुई। 
चुप हो गये अश्को को मेरे देख कर वो लोग।
जो कह रहे थे की इस बरस कोई बरसात न हुई। 
लिखी है कितनी ग़ज़लें   मेने तेरी  याद में। 
मगर अफसोस की तुझसे कभी बात न हुई।
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वो इस गुमान में रहते है की हम उनको, उन से मांगे। 
और हम इस गुरुर  में रहते है की हम अपनी ही चीज क्यों मांगे।
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मिली है मेरे ही नाम से तेरे नाम को सोहरत.
वरना मेरी कहानी   से पहले  तुझे जानता  ही कोन  था.
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समझते हैं हर  बात का वो उल्टा मतलब।
इस बार मिलेंगे तो कह देंगे हाल बहुत  अच्छा है.
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एक समुन्दर है जिसके पार जाना है और एक कतरा  है जो हम से  संभाला नही जाता।
एक उम्र है जो बितानी है उनके बिन और एक लम्हा है जो हम से काटा  नही जाता।

सौजन्य- अरविन्द जी , मनोज जी , सुनील , मुन्नवर  जी 


बुधवार, 20 मार्च 2013

महात्मा गांधी जी की नजर में..... नारी

आज कल के  समय में जब तमाम समाज मे अनेको माध्यमों से महिलाओ के बारे मे नयी सोच बनाने ओर बराबरी में ला  के खडा करने की अपील की जा रही है उसी श्रंखला में पेश है महात्मा गांधी जी के विचार  ..... 
समाज में स्त्रियों की स्थिति और भूमिका    
                      आदमी जितनी बुराइयों के लिए जिम्मेदार है उनमें सबसे ज्यादा घटिया, बीभत्स और पाशविक बुराई उसके द्वारा मानवता के अर्धांग अर्थात नारी जाति का दुरुपयोग है। वह अबला नहीं, नारी है। नारी जाति निश्चित रूप से पुरुष जाति की अपेक्षा अधिक उदात्त है; आज भी नारी त्याग, मूक दुख-सहन, विनम्रता, आस्था और ज्ञान की प्रतिमूर्ति है।  (यंग, 15-9-1921, पृ. 292)            
                         स्त्री को चाहिए कि वह स्वयं को पुरुष के भोग की वस्तु मानना बंद कर दे। इसका इलाज पुरुष की अपेक्षा स्वयं स्त्री के हाथों में ज्यादा है। उसे पुरुष की खातिर, जिसमें पति भी शामिल है, सजने से इंकार कर देना चाहिए। तभी वह पुरुष के साथ बराबर की साझीदार बन सकेगी। मैं इसकी कल्पना नहीं कर सकता कि सीता ने राम को अपने रूप-सौंदर्य से रिझाने पर एक क्षण भी नष्ट किया होगा। ( यंग, 21-7-1921, पृ. 229)     
                        यदि मैंने स्त्री के रूप में जन्म लिया होता तो मैं पुरुष के इस दावे के विरुद्ध विद्रोह कर देता कि स्त्री उसके मनबहलाव के लिए ही पैदा हुई है। स्त्री के हृदय में स्थान पाने के लिए मुझे मानसिक रूप से स्त्री बन जाना पडा है। मैं तब तक अपनी पत्नी के हृदय में स्थान नहीं पा सका जब तक कि मैंने उसके प्रति अपने पहले के व्यवहार को बिलकुल बदल डालने का निश्चय नहीं कर लिया। इसके लिए मैंने उसके पति की हैसियत से प्राप्त सभी तथाकथित अधिकारों को छोड दिया और ये अधिकार उसी को लौटा दिए। आप देखेंगे कि आज वह वैसा ही सादा जीवन जीती है जैसा कि मैं।
                       वह न कोई आभूषण धारण करती है, न अलंकार। मैं चाहता हूं कि आप भी उसी की तरह हो जाओ। अपनी मौज-मस्तियों की गुलामी और पुरुष की गुलामी छोडो। अपना शृंगार करना छोडो, इत्र और लवैंडरों का त्याग कर दो; सच्ची सुगंध वह है जो तुम्हारे हृदय से आती है, यह पुरुष को ही नहीं अपितु पूरी मानवता को मोहित करने वाली है। यह तुम्हारा जन्मसिद्ध अधिकार है। पुरुष स्त्री से उत्पन्न होता है, उसकी मांस-मज्जा से बना है। अपनी प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त करो और अपना संदेश फिर सुनाओ।(यंग, 8-12-1927, पृ. 406)    
अबला नहीं-                                                                                
नारी को अबला कहना उसकी निंदा करना है; यह पुरुष का नारी के प्रति अन्याय है। यदि शक्ति का अर्थ पाशविक शक्ति है तो सचमुच पुरुष की तुलना में स्त्री में पाशविकता कम है। और यदि शक्ति का अर्थ नैतिक शक्ति है तो स्त्री निश्चित रूप से पुरुष की अपेक्षा कहीं अधिक श्रेष्ठ है। क्या उसमें पुरुष की अपेक्षा अधिक अंतःप्रज्ञा, अधिक आत्मत्याग, अधिक सहिष्णुता और अधिक साहस नहीं है ? उसके बिना पुरुष का कोई अस्तित्व नहीं है। यदि अहिंसा मानव जाति का नियम है तो भविष्य नारी जाति के हाथ में है... हृदय को आकर्षित करने का गुण स्त्री से ज्यादा और किसमें हो सकता है? (यंग, 10-4-1930, पृ. 121)
                                                                           
               यदि पुरुष ने अपने अविवेकपूर्ण स्वार्थ के वशीभूत होकर स्त्री की आत्मा को इस तरह कुचला न होता और स्त्री 'आनंदोपभोग' का शिकार न बन गई होती तो उसने संसार को अपनी अंतर्हितअनंत शक्ति का परिचय दे दिया होता। जब स्त्री को पुरुष के बराबर अवसर प्राप्त हो जाएंगे और वह परस्पर सहयोग और संबंध की शक्तियों का पूरा-पूरा विकास कर लेगी तो संसार स्त्री-शक्ति का उसकी संपूर्ण विलक्षणता और गौरव के साथ परिचय पा सकेगा। (यंग, 7-5-1931, पृ. 96)
            मेरा मानना है कि स्त्री आत्मत्याग की मूर्ति है, लेकिन दुर्भाग्य से आज वह यह नहीं समझ पा रही कि वह पुरुष से कितनी श्रेष्ठ है। जैसा कि टाल्सटॉय ने कहा है, वे पुरुष के सम्मोहक प्रभाव से आक्रांत है। यदि वे अहिंसा की शक्ति पहचान लें तो वे अपने को अबला कहे जाने के लिए हरगिज राजी नहीं होंगी। ( यंग, 14-1-1932, पृ.19)                                                                                                
स्थान-व्यतिक्रम
स्त्री पुरुष की सहचरी है, उसकी मानसिक क्षमताएं पुरुष के बराबर हैं। पुरुष के छोटे-से-छोटे कार्यकलाप में भाग लेने का उसे अधिकार है और जितनी स्वाधीनता और आजादी का हकदार पुरुष है, उतनी ही हकदार स्त्री भी है।
स्त्री को कार्यकलाप के अपने क्षेत्र में सर्वोच्च स्थान पाने का वैसा ही हक है जैसा कि पुरुष को अपने क्षेत्र में है। स्वभावतया यही स्थिति होनी चाहिए; ऐसा नहीं है कि स्त्री के पढ-लिखे जाने पर ही वह इसकी हकदार बनेगी।
गलत परंपरा के जोर पर ही मूर्ख और निकम्मे लोग भी स्त्री के ऊपर श्रेष्ठ बनकर मजे लूट रहे हैं, जब कि वे इस योग्य हैं ही नहीं और उन्हें यह बेहतरी हासिल नहीं होनी चाहिए। स्त्रियों की इस दशा के कारण ही हमारे बहुत-से आंदोलन अधर में लटके रह जाते हैं।(स्पीरा, पृ. 4)                                                                                          
               स्त्री ने अनजाने में अनेक विचक्षण उपायों से पुरुष को विविध प्रकार से फंसाया हुआ है और इसी प्रकार, पुरुष ने भी स्त्री को अपने ऊपर वर्चस्व प्राप्त न करने देने के लिए अनजाने में उतना ही किंतु व्यर्थ संघर्ष किया है। परिणामतः एक गतिरोध की स्थिति उत्पन्न हो गई है। इस दृष्टि से देखें तो यह एक गंभीर समस्या है जिसका समाधान भारत माता की प्रबुद्ध बेटियों को करना है। उन्हें पश्चिम के तरीकों का अनुकरण नहीं करना है, जो शायद वहां के वातावरण के अनुकूल है। उन्हें भारत की प्रकृति और यहां के वातावरण को देखकर अपने तरीके लागू करने होंगे। उनके हाथ मजबूत, नियंत्रणशील, शुचिकारी और संतुलित होने चाहिए जो हमारी संस्कृति के उत्तम तत्वों को तो बचा रखें और जो कुछ निकृष्ट तथा अपकर्षकारी है, उसे बेहिचक निकाल फेंकें। यह काम सीताओं, द्रौपदियों, सावित्रियों और दमयंतियों का है, मुस्तंडियों और नखरेबाज स्त्रियों का नहीं।                                                                                                                                                                                                        
                पुरुष ने स्त्री को अपनी कठपुतली समझ लिया है। स्त्री को भी इसका अभ्यास हो गया है और अंततः उसे यह भूमिका सरल और मजेदार लगने लगी है, क्योंकि जब पतन के गर्त में गिरने वाला व्यक्ति किसी दूसरे को भी अपने साथ खपच लेता है तो गिरने की क्रिया सरल लगने लगती है।  (हरि, 25-1-1936, पृ. 396)                  मेरा दृढ़ मत है कि इस देश की सही शिक्षा यह होगी कि स्त्री को अपने पति से भी 'न' कहने की कला सिखाई जाए और उसे यह बताया जाए कि अपने पति की कठपुतली या उसके हाथों में गुडिया बनकर रहना उसके कर्तव्य का अंग नहीं है। उसके अपने अधिकार हैं और अपने कर्तव्य हैं। (हरि, 2-5-1936, पृ. 93)     सही शिक्षा
मैं स्त्री की उचित शिक्षा में विश्वास करता हूं। लेकिन मेरा पक्का विश्वास है कि पुरुष की नकल करके या उसके साथ होड लगाकर वह दुनिया में अपना योगदान नहीं कर सकेगी। वह होड लगा सकती है, पर पुरुष की नकल करके वह उन ऊंचाइयों को नहीं छू सकती जिनका सामर्थ्य उसके अंदर है। उसे पुरुष का पूरक बनना है। (  हरि, 27-2-1937, पृ. 19)                                                                                       
             मुझे भय है कि आधुनिक लडकी को आधे दर्जन छैलाओं की प्रेमिका बनना अच्छा लगता है। उसे जोखिम पसंद है... वह जिस तरह के वस्त्र धारण करती है वे उसे हवा, पानी और धूप से बचाने के लिए नहीं बल्कि लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए होते हैं। वह रंग-रोगन लगाकर और असाधारण दिखाई देने का प्रयास करके प्रकृतिदत्त सुंदरता को बढाने का उपक्रम करती है। अहिंसा का मार्ग ऐसी लडकियों के लिए नहीं है।(  हरि, 31-12-1938, पृ. 409)                                                                                               


(स्त्रोत : महात्मा गांधी के विचार)    

शनिवार, 16 मार्च 2013

बस किसान के मजे है।।।

बात उस समय की है जब में स्नातक का छात्र था। मेरा एक मित्र सुनील भी पास में ही एक बेहतरीन सी आवासीय कॉलोनी में रहता था। उस के कमरे पर  मेरा  जाना लगभग प्रति दिन का ही था। चूंकि हम लोग किराये पर  रहते थे तो खाने का प्रबन्ध बाहर से ही करना पडता था।  उसी आवासीय कॉलोनी जहाँ सुनील रहता था, में एक लोग  के यहाँ से वो लोग टिफ़िन दुवारा  खाना लाते  तथा कमरे पर ला के खाते थे। 
                     एक दिन  सुनील बोला की खाने लेने चलते है। मैंने तो मना कर  दिया कि  तुम ही जाओ। तब सुनील ही खाना लेने गया। वो कुछ देर बाद  वापस आया तो थोडा सा चिंतन की पीड़ादायी मुद्रा में था। मेरे पूछने बोला की यार क्या बताउं ?  अभी जब खाना ले के  के वहाँ  से निकला  तो दो शहरी महाशय रात के  खाने के बाद टहलने निकले थे कॉलोनी के पार्क के  चारों तरफ वाली सडक पर और में उनके पीछे चल रहा था । वो दोनों ही अपने जीवन और रोजमर्रा की परेशानियो पर टहलते हुए चर्चा कर  रहे थे। शायद अधिकतर नौकरी पेशे वालों की तरह वो भी अपने पेशे  से संतुष्ठ नही थे तभी उनमे से एक अपने तनाव के चरम पर  पहुंचकर  सहसा ही  बोल उठा "साला बस किसान के  मजे है एक बार बीज बिखेर आओ खेत में और कुछ दिन बाद जा के  काट  लो फसल और साला मोटे पैसे में बेच दो कुछ करना ही नही है कोई टेंसन ही नही । "

सुनील तो ये बात सुन क मन ही मन उनकी अज्ञानता और अल्प जानकारीयो पर  दुखी हो के  चला आया और मुझे बता दी। मुझे बहुत तकलीफ हुई पर, मन ही मन परमात्मा को धन्यावाद दिया की उनका वो मुर्खता पूर्ण कुतर्क मैंने अपने कानो से प्रत्यक्ष नही सुना वरना उसी पल उन दोनो  से मेरे को तर्क - वितर्क करना पडता  तथा बात  आगे बढती तो माहोल  हिंसक भी हो सकता था जिससे वो मुझे कॉलोनी में बदतमीजी के  आरोप में गिरफ्तार भी करा सकते थे वेसे भी काम आसान  था क्योंकि बसपा की सरकार हम लोगो को  फसाने के बहाने ही चहिये। ऊपर वाले की दुआ से बच  गये.
              अब बात शुरु करते है किसानों की।  हालाँकि वो जगह हम 2010 में ही छोड़ चुके है पर वो पंक्ति आज भी याद  है अतः चर्चा जायज़ भी है। ये बात सभी भलीभांति जानते है कि  अपना देश एक कृषि प्रधान  देश है तथा  इसकी लगभग 70% जनता का  आज भी भरण - पोषण  कृषि पर ही निर्भर है। भारत की कृषि वर्षा  के  ऊपर  आधारित है ये बात भी नयी नहीं है। यानी कि  मानसून  की दरियादिली पर बहुत  ज्यादा निर्भरता है। यानी  कि अगर मानसून अच्छा न हो तो किसान के दो वक़्त की रोटी के  भी लाले पड जाते है .ऊपर से पीढ़ी  दर पीढ़ी, कृषि योग्य जमीन में आती कमी जिससे कि एक किसान के हिस्से में मुश्किल से परिवार चालने के लायक भी जमीन नही बच पा रही है अधिकतर मामलो में यही देखने मे आ रहा है। ज्यादा आवासीय जमीन की मांग के चलते  कृषि योग्य जमीन का  व्यवसाय किया जा रहा है जिससे जमीन की किल्लत दिन प्रति  दिन बढती जा रही है। सिंचाई के  साधनो में नलकूप और नहरों पर निर्भरता है और इनका हाल यह है कि नलकूपों के लिए बिजली नही है और नहरो में कभी टेल तक पानी पहुँचता नही है। और डीजल से सिचाई इसकी  दरों को देखते हुए सम्भव नही। यानी वक़्त पे पानी न मिल पाने से फसल की तबाही अक्सर ही हो जाती है जैसा समाचार पत्रो में छपता ही रहता है की फलां फलां जगह सुखा ग्रस्त है फसल सूखे से नष्ट हो जा रही है।
     ये तमाम  बाते थी पानी कि कमी के कारण। अब अगर ज्यादा मानसून के  चलते बाढ़ आ जाये  तो दूर दूर तक जल के कारण कुछ नही बचता। यानी कि सब कुछ भगवान भरोसे इस पर किसान का कोई बस नही।

 अब बात करते है कि फसल के शुरु में बीज चहिये  जो कि बुआई के वक़्त किसी भी सरकार कि तरफ से उपलब्ध नही करवाया जाता, हाँ सरकारी योजनाओ के अनुसार हमेशा हो जाता है पर वो सब कागजो तक सीमित है। यानी के किसान महंगा  क़र्ज़ ले के बीज बाजार से खरीदे फिर उसे बो देने के बाद जी-तोड़ मेहनत करे, महंगे महंगे उर्वरक डाले और तभी सुखा पड  जाये या बे मोसम बाढ़ आ जाये। क्या होगा सब बर्बाद।
   अब मान लो ऊपर वाले क रहम से 3 - 4  महीने में फसल तैयार हो गयी तब सुरु होता उस से भी बुरा दोर। फसल का कोडी के भाव बिकना। यानि कि अच्छी फसल को भी बनिया नाक-भो  सकोड़ के ओने पोने दामो में ऐसे खरीदता है जैसे बहुत ही घाटे में जाने वाला हो। खैर किसान की मजबूरी होती है की क़र्ज़ चुकाना है, कुछ खाने को भी बचाना  है सो दे देता है भले ही अपनी मूल लागत मिले या न मिले वरना वैसे भी फसल के सड जाने के बाद कुछ नही मिलना।  अब किसान के घर से फसल उठते ही हो जाती है सोने के भाव। यानी जो फसल किसान के यहाँ से 500 के  भाव गयी वो अब  जाएगी 800 में   बनिये की दुकान पर और अंत में ग्राहक को पड़ेगी 900 के भाव। ये हुई बीच में मुनाफा खोरी जिसे रोकने के लिए सरकार हर रोज कदम उठाने को कहती है पर लगता है कदम जमीन में ज्यादा धस गये है की उठ ही नहीं पा रहे है।
           इन्ही उपरोक्त कारणों से  सम्पूर्ण भारत मे हजारो किसान हर वर्ष आत्म हत्या रहे  ले रहे है।  अभी एक लेख पढ़ा था अखबार में कि  महाराष्ट्र में तो किसान लोगो की लडकियो  की शादी तक  नही हो पा रही है धनाभाव के कारण। अब इससे बड़ी लाचारी क्या हो सकती है की  माँ बाप बच्चो को खिला  न सके और शिक्षा न दे सके।
        हाँ, हर बजट में, हर सरकारी घोषणा में किसानो का ज़िक्र ज़रूर किया जाता है किसानो को आत्म निर्भर बनाने का वादा  किया जाता है लेकिन सालों से हालात वही जस का तस है 
             लेकिन मेरे  देशवासी, कुछ लोगो को लगता है कि साला बस किसान के  मजे है एक बार बीज बिखेर आओ खेत में और कुछ दिन बाद जा के  काट  लो फसल और साला मोटे पैसे में बेच दो कुछ करना ही नही है।

         



 

गुरुवार, 14 मार्च 2013

शान में गुस्ताखी ... मतलब आफत को न्योता

शान  में गुस्ताखी ... इस जमाने  में भला किसे ग्वारी। खाशकर हमारे नेता जी लोग ओर  पुलिस  विभाग  इस कदम  को बहुत  ही गंभीरतापूर्वक  लेते है । अतः आप सभी पाठको से विनम्र निवेदन  है कि भूल वश भी ऐसा  कोई कदम  न उठाएं की उपरोक्त लोगो( भले ही वह इन्सान कोई छुट - भैया  नेता हो या एक मामूली  पुलिस का गैर  जिम्मेवार जवान ) को ना-गवार गुजरे अन्यथा गंभीर परिणाम भुगतने  पड़ सकते है। 

उदाहरण निम्नांकित हें - 

१-  हाल  ही में घर जाने का योग बना था वहाँ पर भी दिन की सुरुआत  अखबार से ही होती है । पेज खोला  की देखता  हूँ   मोटे -२ हरफो में  छापा है "ढाबे मालिक की रात  हवालात में बीती"। बड़ी  जिज्ञासा के  साथ पढना शुरु किया  कि आखीर  माज़रा क्या है भई। हुआ यूँ के हमारे नज़दीक के  कस्बे के एक सत्ता पक्ष के  मामूली से नेता जी रात को  ढाबे पे खाना उधेड़ने (खाने ) पहुंच गये। ऑर्डर - सोडर  हुआ फिर सुरु हुआ नेता जी का खाना। अब नेता जी ने ओर  रोटियाँ  मांगी तो  वही हुआ जिसकी आप कल्पना कर रहें  है. परम्परा अनुसार  परोशने वाले ने कहा की अभी सिक जाने दो(ढाबे का ये मूलभूत  नियम है  की वहां रोटी कभी वक़्त पे नही मिलती हमेशा रोटी मिलने के बीच में मजबूरीवश पानी पीने का वक़्त बड़े आराम से मिलता है जिससे पेट बिना रोटी के  ही   भर जाता है अक्सर  )। और उसने अपनी वो भीनी सी कतील मुस्कराहट भी नेता जी तरफ फेंक दी जो  हर ढाबे के परोशने वालो की एक सी होती है. अब नेता जी दिन भर देश की सेवा में मगन थे  शाम को भूख थी भी कुछ ज्यादा  जबर। रोटी सीकी  और परोशने वाले ने दे दी किसी दूसरे खाने वाले को जो  काफी देर से मांगने की अवस्था में था नेता जी की तरह । बस यही एक भयंकर भूल हो गयी ढाबा प्रबंधन  से की नेता जी मौजूदगी   में किसी और को रोटी पहले कैसे दे दी गयी? फिर सुरु हुआ नेता जी का बल प्रयोग ढाबे वाले पर लात घूंसों की अनियंत्रीत बोछार के रूप  में। बात यहीं नही थमी,खाना  छोड़ नेता जी जा पहुंचे एफ  आई आर करने थाने। फिर शुरु हुई   थानेदार सहाब की भूमिका। थानेदार सहाब  की नज़र में  ढाबा मालिक गुन्हेगार पल भर में ही शाबित हो गया जैसा की होना ही था।
क्योंकि थानेदार साहब पार्टी भक्त ओर नेता भक्त ज्यादा , कानून भक्त कम थे। अब भला नेता जी की शान में गुस्ताखी हो और थानेदार जी इसे होने दे क्या मालूम बात कल  ऊपर तक जा पहुंचे और तबादले का फरमान निकल जाये। अत : पुरे दल बल के  साथ थानेदार साहब जा धमके ढाबे पे और गालियों   से माहौल को रंगीन करते हुए ढाबे वाले को  लाठीयो के  दम से उठा के  गाड़ी में डाल के सीधे हवालात के लिए प्रस्थान किया। जाते जाते ढाबे मालिक के  सहयोगी को आदेश दे गये की साले अगर इसकी धुनाई में कुछ रियायत चाहता है तो थाने  में अंडा - करी और  रोटी मक्खन के साथ पूरे  थाने के  लिए जल्दी ले के आ जा।
 खैर सुबह मामला बड़े नेता जी(नगर अध्यक्ष ) की अदालत में जा कर सुलटा। 
इसीलिये  होशियार - यू . पी . में नेता जी की शान में गुस्ताखी माफ नहीं

२ - अन्ना आन्दोलन का वक़्त था और  मैं  रेल से मेरठ जा रहा था। अभी कुछ दूर ही पहुंचे की रेल रुक गई। मालूम हुआ की  पटरी में कोई दिक्कत है  रेल अभी आगे नही जाएगी. अब हमे पढने (भले ही इस लफ्ज़ का मतलब आजतक हमे मालूम नही) जाना था तो अविलंब हमने समनंतर मेरठ जाने वाले बस मार्ग पे आ गये की चलो भई बस से ही चलते हें। बस आई और  साहब हम उस में चढ़ लिए साथ में एक दीवान जी (पुलिस का सिपाही )भी चढ़ लिए। अब कंडेक्टर जी आये। नियमानुसार  पूरा टिकट के  पैसे  लिए(जैसा की बस में चढ़ने से पहले तय हुआ था की भले ही आधे रस्ते से चढ़े हो पर… ) ओर  टिकट बना दिया। अब बारी गाड़ी के  बोनेट पे बैठे दीवान जी की थी। कंडेक्टर ने पैसा माँगा की दीवान जी ने आँख दिखा दी। बस ये ही उनकी शान में गुस्ताखी हो गयी थी कि  अरे पुलिस से पैसा  कैसे माँगा बे?
 बस कंडेक्टर भी नया नया था ऊपर से अन्ना जी के आन्दोलन का  रंग सिर पे सवार था। टिकट मशीन रखी एक तरफ ओर एक हाथ से दीवान जी की गिरेबान पकड़ के  उन्हें बोनेट पे ही लीटा  लिया और 4 - 5 घुसे  दीवान जी के मोटे से पेट में अपने दूसरे ढाई किलो के  हाथ से जड़ दिये।
 अब वहाँ  तो बीच बचाव लोगो क दुवारा करा दिया गया। पर  कुछ दूर ही दीवान जी  का  थाना आ गया बस फिर क्या  गीदड़ घर में शेर हो गया. बस रोक ली गयी। कंडेक्टर  से नीचे आने को कहा  गया वो  धीरे से उतरा और उतरते ही अपने दोनो हाथ हवा में लहराते हुए चिल्लाया " मैं  अन्ना हजारे हूँ मुझे गिरफ्तार  करो ..."

इससे ज्यादा बेहतरीन पल मैने  अभी तक  अपने अल्प जीवन में नही देखा कि  दीवान जी भी इसे देख के  अपनी मार  भूल गये और आँख फाड़ -2 के क्या हुआ ये देखने में ही रह गये।
 खैर लोगो की प्रार्थना पे बस को जाने दिया गया और कंडेक्टर का नाम पूछ के  लिख लिया गया भविष्य देख लेने   के लिए। खुदा जाने बाद में क्या हुआ हो।

३ - अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश शासन ने 2 0 1 2  में 12 वी पास एवं  जो छात्र अभी फिलहाल में भी स्नातक कर रहे हें मुफ्त में लैपटॉप बांटे- शीक्षा  प्रोत्साहन  के लिये में. सुना जाता हैकि  उसमे एक खास सोफ्टवेयर डाला गया है जिससे उस लैपटॉप में वालपपेर में माननीय अखिलेश जी तथा श्री मुलायम जी का फोटो है। अभी सुनने में आया है  कि  कुछ छात्रों ने उसे हँटाने की नाकाम और दुस्साहसीक कोशिश की तो सारा लैपटॉप ही बंद हो गया जो चल ही नही पा रहा है। जिसे ले के  छात्र H P(निर्माता कंपनी ) के सर्विस सेन्टर के  चक्कर काट रहें है।
 अब हो गयी न वो ही बात " नेता की शान में कोई गुस्ताखी बर्दास्त नही की जाएगी न ही  सेवकों के दुवारा ना  ही लैपटॉप नामक मशीन के दुवारा "
तो आई बात समझ " शान से कोई मजाक नही " वरना गंभीर परीणाम  भुगतो ....

        वैसे अभी वक़्त आ गया है की आप  इस लेख को पसंद करे या ना करे  पर कमेन्ट/शेयर जरुर करना है। क्योंकि प्रतिक्रिया ना देना हमारी शान के  खिलाफ  है। आखिर हम भी किसी प्रधान-मंत्री से कम नहीं है भई ।



बुधवार, 13 मार्च 2013

पीएचडी, दारूबाजी पर .....

हाल ही  में  इन्टरनेट पर एक शानदार पोस्ट देखी थी, सोचा चलो अपने ब्लॉग  में चिपकाकर  अपने दोस्तो  का ज्ञानवर्धन एवं मनोंरंजन  कर दें. वेसे जीवन का पहला ब्लॉग हे  तो सुरूआत  भी हंशी और दारू जैसी शुभ औषधी  के  साथ हो कलेज़े को कुछ ठण्डक पड़ेगी . यह लेख उन दारूबाजों को समर्पित है जिन्होंने अपनी पूरी  जिंदगी दारु को समर्पित कर रखी है. ऐसा अक्सर देखा जाता है कि लोग दो तीन पैग पीने के बाद अजीब अजीब से हरकतें करने लगते है, ये लोग उन दारूबाजों कि तरफ से लिखा गया है, जो ज्यादा पीने के बाद महसूस करते है. दारूबाजों से निवेदन है कि बोतल खोलने  के पहले इस लेख को पढ़े, क्योंकि पीने के बाद तो शायद दुसरे पढकर आपका उपचार करें.
तो फिर शुरू करें?

1) लक्षण : यदि आपको लगे कि आपके पैर ठन्डे और गीले हो रहे है.
कारण : आपने अपने गिलास को ढंग से नहीं पकड़ रखा है, (आप दारू को गिलास के पिछले हिस्से में उढ़ेल रहे है, जो आपके पैर पर गिर रही है)
उपचार : गिलास को धीरे से उलटिए, ताकि उसकी गहरे में आप झांक सके, अब फिर से उसमे दारु उडेलना शुरू करिये. अबकी सीधे से डालियेगा.

2) लक्षण : आपको  आँखों के सामने ढेर सारी रौशनी दिखाई पड़ रही है.
कारण : आप फर्श पर गिरे पड़े है.
उपचार : अपने शरीर को 90 डिग्री में घुमाइए , क्या कहा 90 डिग्री क्या होता  है ? देखा गणित से नफरत करने का क्या नतीजा होता है,? अपने एक हाथ को फर्श पर लगाइए और उठ खड़े होइए, 90 के फेर में मत अटकिये.

3) लक्षण : आपको सब कुछ धुंदला धुंदला दिखाई दे रहा है.
कारण : आप खाली गिलास के आर पार देख रहे है.
उपचार : अब देखना वेखना छोडिये और गिलास (सीधा करके) दारु डालिए.

4) लक्षण : पूरा फर्श हिल रहा है.
कारण : कोई भूकम्प वगैरह नहीं आया है, आप फर्श पर घसीटे जा रहे है.
उपचार : आपने आपको संयत करने की कोशिश करिये, और कम से कम उनसे पूछिए तो कि  भई कहाँ ले जा रहे हो? वहाँ दारु का इंतज़ाम है कि नहीं?

5) लक्षण : आपको सभी लोगो की आवाज गूंजती गूंजती सुने पड़ रही है.
कारण : नहीं भई, आप पहाडो पर नहीं हो, आपने अपना खाली गिलास कान में लगा रखा है.
उपचार : अब गिलास से टेलीफोन टेलीफोन खेलना छोडिये, गिलास भरिये और अगला पैग बनाइये.

6) लक्षण : आपको अपने परिवार के लोगों की  शक्लें अजीब अजीब सी लग रही है.
कारण : आप गलत घर में घुस आये हैं,
उपचार : इस से पहले कि वो आपको पीटें, दोनों हाथ जोड़कर उनको निवेदन करें कि वो आपको आपके घर तक छोड़कर आयें.

7) लक्षण : एक अजीब से महिला, जानी पहचानी आवाज में चिल्ला चिल्ला कर कुछ बेफिजूल सा कहने कि कोशिश कर रही है.
कारण : आप अपने ही घर में अपनी बीबी के सामने खड़े है. यदि महिला आपको पीने के बाद अजीब लग रही है, तो ये आपकी शादी के फैसले की जल्दबाजी का ही नतीजा है.
उपचार : “डार्लिंग, अब से तौबा, आगे से नहीं” टाइप के डायलोग (निवेदन भरे, मधुर स्वर में) पेश करिये. पत्नी जी, अपनी ऊर्जा खत्म होते ही, आपको आपके हाल पर छोड़ कर, पैर पटकती हुई चली जायेंगी.

8) लक्षण : वातावरण में अजीब सी गंध है, लेकिन कोई आपको बहुत प्यार कर रहा है.
कारण : आप नाली में गिरे पड़े है और सुवर/कुत्ता आपके मुंह को चाट रहा है.
उपचार : सुवर/कुत्ते को दूर हटाइए, नाले से उठने  की ( वैसे ही 90 डिग्री वाली )  कोशिश करिये

9) लक्षण : पूरा कमरा थरथरा रहा है, सभी लोग अजीब सी सफ़ेद पोशाक में है.
कारण : आप एम्बुलेंस में है.
उपचार : कुछ मत करिये, यूं ही पड़े रहिये, जो करना है डॉक्टर को करने दें.
10) लक्षण : सभी लोग उलटे उलटे (सर के बल चलते हुए)  दिखाई दे रहे है और सारे लोग अजीब सी खाकी पोशाक में है.
कारण : आप पुलिस थाने में है, और आपको उल्टा लटकाया गया है.
उपचार : उनसे पूछिए कि भई, हंगामा है क्यों बरपा थोड़ी सी जो पी ली है.

तो फिर आप लोग अपनी राय देना मत भूलिएगा, कोई और प्वाइंट रह गया हो तो जरूर बताइयेगा.