शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

तहलका वाले का शर्मनाक तहलका

बात  बहुत पुरानी नही हुई है जब दिल्ली में वो शर्मनाक घटना घटी थी पुरे देश में उस घटना ने जो रोष फैलाया वो दुनिया ने देखा।    और शायद उसी वजह से आज हमारे पास एक कानून है।   वो बात अलग है कि कुछ लोगो को न कानून का डर  है, न शर्म है, न हया है, न उम्र का लिहाज है।
         उस वक़्त जब वो घटना घटी थी तो लोग सड़को  थे यहाँ तक कि राष्ट्रपति भवन में घुसने तक आमदा हो गये थे। और इसमें कोई दोराय नही कि उस आन्दोलन कि कामयाबी के पीछे मीडिया का सहयोग बेशक सरहानीय था. 
          चलो उसमे घटना के बाद जो हुआ सब जानते है. पर उस घटना के समय बहुत  लोगो ने अपनी जबान खोली थी बहुत कुछ लिखा था ,बोला था तरह तरह माध्यमो से। पर आज मुझे  लग रहा है कि लोगो कि कथनी और करनी में वास्तव में फर्क़  होता है। . मुझे कल से ही बहुत  दुःख है इस बात का कि इन्सान कितना गिर गया है न शर्म है न हया है न उम्र का लिहाज है.
         मैं उन लोगो के लिए नरम रवैया अपना सकता  हूँ जो अनपढ़ है जाहिल है या अपराधी ही है पर उस उस पागल या  सनकी के लिए नही  जो खुद को  औरत जात  का हमदर्द कहता हो और उनके अधिकारो के लिए बड़े बड़े दावे और भाषण बाज़ी करता हो।   कहने का मतलब है खुद को एक बुद्धजीवी  देवता के तोर पर पेश करता हो  और काम  दानवों  वाले करता हो.
          शायद आप समझ ही गये है कि तरुण तेजपाल नामक एक आदमी कि बात कर  रहा हूँ जो कि तहलका के सम्पादक व  संस्थापक था  कल तक।  उसने  क्या किया ये भी आप जानते ही होंगे। फिर भी बता दूँ  उसने अपनी सहकर्मी,   अपने दोस्त कि बेटी तथा  अपनी बेटी कि दोस्त के साथ ###### किया वो भी बिना रज़ामंदी के लगातार  दो दिन।   मै इसे  किसी और के साथ नही बल्कि उस कि स्वम् कि बेटी के साथ ये बलात्कार मानता हूँ क्योंकि वो उम्र में भी उस कि स्वम् कि बेटी के ही बराबर  थी तथा  खाश दोस्त भी  और खुद उसके दोस्त कि बेटी।  बोलते है कि नशे कि हालत में सब हुआ  पर क्या नशे में लोग अपनी माँ ,बहन,  बेटी   को  भी भूल  जाते है क्या ?  नही ना।  तब तो ये सरासर इरादे से किया हुआ कार्य है।  ऐसा मै  नही कहता खुद उसका ख़त कहता है।  

       सवाल ये है कि जब ऐसे लोग जो  खुद दूसरो को उपदेश देते घूमते है कि ये गलत  है ये सही है फलां ढिमका।  और खुद कम अपराधियो वाले करते है ये पापी।  तो अब  आम आदमी किस पर यकीन करे।   मै कहूँगा कि किसी पर नही।  

और देखो इस इंसान का भोलापन खुद सब कुछ कबूला और कहा  मुझे मलाल है उस घटना का . "अबे सनकी ये कैसा मलाल कि लगातार दो दिन तक इंसान होश में रहने कि बावजूद किसी की इज्जत से खेले  बाद में माफ़ी मांग ले और चलता बने. " 

  खुद ही खुद को सजा मुकरर कर ली वो भी छ:  महीने कि छुट्टी।    इस से कोई पूछने  वाला हो कि अबे ऐसी सजा किस अपराधी को नही चाहिये बे ।   ये सजा नही मज़ा है अपराध करने के बाद का . इससे अच्छा क्या होगा कि कल को कोई कुछ भी करेगा  और अगले दिन कहेगा कि मुझ से गलती हुई है अब में छुट्टी पर जा रहा हूँ।  
      और अब बात करते है तहलका कि बहुत  खुलासे करते थे ये लोग।  हमे भी अच्छ लगता था कि जान कर कर लोगो कि असलियत .  पर इन लोगो ने दुसरो कि असलियत तो खूब पहचानी और लोगो तक पहुँचायी पर अपनी छुपायी और अब किसी तरह असे मामला जब खुल गया तो कहते है कि बात खुल गयी.  अब बहुत दुःख हो रहा है इन्हे। और तो और खुद तरुण का बचाव पर उतर आयें  है बेशर्म।  हद होती है बेशर्मी कि भी।  
      कुछ दिनों पहले एक ढोगी  बाबा ओर  फंसे थे  इसी तरह के अपराध में।  तहलका ने पूरा कच्चा चिट्ठाह खोल दिया बाबा के खिलाप पूरी तहकीकात कि(lhttp://www.tehelkahindi.com/%E0%A4%86%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%A3-%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE/1963.html)  और दुनिया को रु ब रु कराया उस । पर अपने ऊपर आंच  आयी तो भाग लिए।  अगर इंसाफ से वास्तव में ही कोई लगाव था तो तरुण को मामले के सामने आते ही सजा दिलाना चाहिए था ना पर इन लोगो ने मामले को छुपाया इसलिए इन्हे भी सजा मिले।  

  मै भी बड़े शौक से इस पत्रिका को पढ़ता था पर आज खुद पर शर्म आती है. कि कितना वक़्त जाया कर दिया। लोग मुखोटा लगा कर घूमते है।  विश्वास नही होता कि मिडिया से जुड़ा हुआ कोई लगभग बुढा इंसान इसे गिरी हुई हरकत करेगा  पर कि है  ये सच है।  

  
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